साबूत अंगूठा दिखा दिया

साबूत अंगूठा दिखा दिया
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कसूर, इतना कि आँसू को पोछ लिया
डर अपने अक्स, से डर न जाओ प्रिया

रस्म नहीं मुनासिब भी नहीं जो किया
समझो, यह सब है अपना किया धिया

मुल्कियों की बात तो है खुद यही जीया
मुसीबत से खुश होकर तू ने राहत दिया

मेरे जज्वात का क्या जो दिया सो लिया
दिन थोड़े बचे हैं जो दिया सो कह दिया

आया था हाकिम कटी तर्जनी दिखा दिया
तो उसने अपना साबूत अंगूठा दिखा दिया

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