एक अनावश्यक स्पष्टीकरण, नहीं तो!

एक अनावश्यक स्पष्टीकरण, नहीं तो!
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मैं जानता हूँ कि इधर मेरी कुछ मैथिली पोस्ट का अर्थ लगाने में कठिनाई महसूस कर रहेंगे। थोड़ी-बहुत कठिनाई तो वे भी महसूस कर रहे होंगे जो मैथिली बोलते लिखते पढ़ते समझते रहे हैं। तो फिर, यह जानते हुए भी मैं इस तरह की शैतानी क्यों कर रहा हूँ! असल में, मैं मैथिली का अपना जातीय ठाठ तलाश रहा हूँ। ठाठ माने रिदम। पुरुष वर्चस्व व्यवस्था में भाषा में पुंसकोड यानी मर्दाना रोआब बहुत तीखा होता है। मर्दाना रोआब से मुक्ति थोड़ा नहीं, बहुत कठिन है। हाल के दिनों में तो भाषा में खासकर राजनीतिक भाषा के रूप में बहु व्यवहृत हिंदी में तो यह मर्दाना रोआब बहुत तेजी से बढ़ा है। हिंदी में लिखते रहने की लगातार कोशिश करते हुए मैंने हिंदी में मर्दाना रोआब की बे-अदबी को न सिर्फ अपने तरीका से समझा है, बल्कि अपने स्तर पर महसूस भी किया है। मेरा थोड़ा बहुत परिचय बांग्ला भाषा से भी रहा है। बांग्ला भाषा में इस मर्दाना रोआब का असर कम है। अभी भी, अपने खून में हुगली के पानी की खनक सुनाई देती है मुझे। 
अभी मिथिलांचल में बाढ़ आई थी। बाढ़ में सबसे ज्यादा तकलीफ जिन चीजों के अभाव से ऊपजती है उन में पानी अहम है! चारो तरफ पानी। पानी से घिरे लोगों के पास पानी नहीं है। पीने-पचाने लायक पानी को बचाना जैसे बड़ा काम है वैसे ही भाषा के बढ़ते प्रवाह में बोलने-सुनने लायक भाषा को बचाना भी बड़ा काम है। मर्दाना रोआब के खतरे भोजपुरी में भी कम नहीं है, ऐसा मुझे लगता है, इसकी पुष्टि या इसका खंडन तो भोजपुरी को अधिक गहराई से जाननेवाले लोग ही प्रामाणिक ढंग से कर पायेंगे। अपेक्षाकृत मगही भाषा पर मर्दाना रोआब का असर कम है। मैथिली में भी इस मर्दाना रोआब का असर उतना नहीं है। हाँ तो, इस तरह समझा जा सकता है कि मैं मैथिली का अपना जातीय ठाठ तलाशते हुए उस के अंदर किंचित सक्रिय मर्दाना रोआब को निष्क्रिय deactivate करने की कोशिश कर रहा हूँ। मैंने तो जो भी सीखा है, दोस्तों से ही सीखा है। आप से अनुरोध है कि इस में मेरी मदद करें। मैथिली के संदर्भ में इस मर्दाना रोआब निष्क्रिय deactivate करने की कोशिश का नतीजा उत्साहबर्द्धक रहा तो फिर इसका लाभ अपनी हिंदी में भी मुझे मिलेगा। बस इतना ध्यान रहे, आपका, यानी प्राइमरी जनता विद्यालय का अल्प बुद्धि छात्र और आपके स्नेह का स्वाभाविक हकदार भी हूँ।

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