लोकतंत्रीय नागरिक

लोकतंत्रीय नागरिक 

आज राज्य और समाज भयानक तनाव से गुजर रहे हैं। मणिपुर की घटना से लोग बहुत विचलित हैं। लोकतंत्रीय सरकारों के रहते यह सब हुआ है, होता रहा है। इस तरह की घटनाओं को, वह कहीं भी हो, नजरंदाज करना मुश्किल तो है ही, खतरनाक भी है। याद करना चाहिए, ‘भारत में विभिन्न वंशों और राजाओं का शासन रहा, लेकिन समाज अपना काम करता रहा और कभी भी इस काम में कोई दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं की। राजनीतिक नेतृत्व के परास्त होने या शासन से बाहर कर दिये जाने के बावजूद, बिना किसी उथलपुथल के इसकी संपन्नता अक्षुण्ण रही। सापेक्षिक रूप से समाज स्वशासी था। समाज और राज्य स्वतंत्र इकाई के रूप में काम करते थे, यह टैगोर का स्पष्ट रूप से मानना था।’ (साभारः THE POLITICAL IDEAS OF RABINDRANATH TAGORE: Reflections of a Public Intellectual: SUBRATA MUKHERJEE)
 समाज में स्वशासन का होना आज दूर की कौड़ी हो गई है। यह राजनीतिक विफलता से अधिक नागरिक जमात की बौद्धिक एवं सामाजिक अनुपस्थिति से उत्पन्न संकट है। लोकतंत्र के नाम पर समाज धर्म, समुदाय आधारित वोट बैंक में और नागरिक महज वोटर बनकर रह गया है।  दुनिया भर में घट रही घटनाओं को देखते हुए यह साफ-साफ मान लेना चाहिए कि सराकारें, वे कैसी भी हों कहीं भी हों, कभी नहीं चाहती हैं कि समाज लोकतंत्रीय हो। चुनाव केंद्रित राजनीतिक दलों से इस मामले में, अब व्यर्थ की न तो लोकतंत्रीय उम्मीद की जानी चाहिए और न ही दोष देना चाहिए। यह मान लिया जाना चाहिए कि सारा दारोमदार नागरिकों पर ही है। लोकतंत्र के प्रति निष्कपट निष्ठा रखनेवाला नागरिक जमात ही लोकतंत्रीय समाज और लोकतांत्रिक सरकार बनवा सकता है। एक अच्छा नागरिक होने के लिए क्या जरूरी है?  ‘किसी व्यक्ति को अच्छा हरवाहा बनने के लिए भूगर्भशास्त्री बनने की जरूरत नहीं है और इस बात की भी जरूरत नहीं है कि वह उस चट्टानी परत को या उसके नीचे की चट्टानी परत को जाने जो उस मिट्टी को थामे है, जहाँ वह रहता है और काम करता है और जहाँ से वह अपने लिए पोषण प्राप्त करता है। इसके अतिरिक्त अच्छा और उपयोगी नागरिक बनने के लिए यह जरूरी नहीं है कि कोई व्यक्ति अच्छा इतिहासकार हो और यह जाने कि जिस संसार में वह रहता है वह कहाँ से आया और जहाँ वह रहता है तथा काम करता है और जहाँ से वह अपना श्रेष्ठ पोषण हासिल करता है, उस बौद्धिक जमीन को तैयार करने के लिए मानव जाति को भाषा, धर्म और दर्शन के कितने चरणों से होकर गुजरना पड़ा है।’ (साभारः Bharat : Hamein Kya Sikha Sakta Hai? (Hindi Edition)Max Muller and Suresh Mishra)
 जी, सारा दारोमदार नागरिकों पर ही है।


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