गुस्ताख मुहब्बत को सलाम

गुस्ताख मुहब्बत को सलाम

मेरी जिंदगी में आई जो बहार तेरे आने से
उस बहार को सलाम,
गम हमारे कम तो नहीं, खुशियाँ भी कम नहीं रही
गम गले मिलकर खुशियों से रोये बार-बार
जाने क्या नजारा है जो जमीन पर हकीकत बन आया है
इस नजर और नजारा को सलाम



सपने पहले भी आते थे
तुम नहीं आते थे सपने में फिर सपनों ने अपना रंग बदला
रंग जवाँ हुए और मुस्कुराए तो तुम्हारा चेहरा ही उभर आया
समझकर दिल जिसे सम्हाला अब तक वह निकला तुम्हारी छाया
चमकती काली आँखों में छिपे सुर्ख-सुनहरे ख्वाबों को सहलाया
सुर्ख-सुनहरे ख्वाबों को सलाम

थरथराती अँगुलियों में झनझनाये बेशुमार सितारों के तार
जब कभी छुआ अपने बदन को तुम्हारी अमानत की तरह
लगा कि यह बदन तो तुम्हारा ही है जिसे मैं लिये फिर रहा हूँ
जिसे जमाना मेरा समझता है अब वह तो मुझ पर तेरा उधार है
मैं जो खुद से लिपटने को मचलता हूँ ख्वाबों में बार-बार
माफी का हकदार है यह गुस्ताख हरकत, हाँ यही है मुहब्बत
इस गुस्ताख मुहब्बत को सलाम

इस मुहब्बत में गिन-गिनकर दिन गुजरे
आखिर यह चाहत ही तो है, गुनाह तो नहीं
सूरज चमके आसमान में हासिल जो मुहब्बत है,
वह सिर्फ जुल्फों की छाँह तो नहीं
कड़ी धूप है, नीचे रेत है, काँटे हैं,
पीठ पर सिर्फ अधूरे  सपनों का असबाब ही नहीं
अतृप्त प्यास ही सच बना रहे,
मगर यह एहसास भी तो हकीकत है, महज ख्वाब नहीं
गुस्ताख मुहब्बत को सलाम

इस नजर और नजारा को सलाम
सुर्ख-सुनहरे ख्वाबों को सलाम
इस गुस्ताख मुहब्बत को सलाम







कोई टिप्पणी नहीं: