हँसो कि...
नहीं मेरे हमसफर
नहीं होना चाहिए
तुम्हें इतना उदास
जब तक टहनियों पर
बार-बार लौट आते हों फूल
नहीं होना चाहिए
तुम्हें इतना उदास
जब तक टहनियों पर
बार-बार लौट आते हों फूल
नहीं होना चाहिए
तुम्हें इतना उदास जब तक
नामालूम पहाड़ के सीने से भी
फूट रहा हो झरना
नहीं होना चाहिए
तुम्हें इतना उदास जब तक
बरसात के बाद
चतर जाती हो
धरती के सतह पर दूब
नहीं होना चाहिए
तुम्हें इतना उदास जब तक
दुख-दर्द-शोषण के बीच से भी
झाँक लेती हो
मजदूरों किसानों की
घमायी मुस्कान
क्योंकि तब तक
दुनिया के लिए
हर मुश्किल से बच निकलने का
रास्ता है आसान
उदासीन नहीं है
अपनी कील पर नाचती हुई पृथ्वी
उदास न हो मेरे हमसफर तुम भी
तुम्हारी उदासी से लजा जाएँगे
अभी-अभी वृंत पर जो आये हैं फूल
अभी-अभी वृंत पर जो आये हैं फूल
तुम्हारी उदासी से सहम जायेगी
अभी-अभी जो फूटी है जलधारा
जो थोड़े-से
जाते हैं, वे बच्चे भी
नहीं जा पायेंगे स्कूल
नहीं जा पायेंगे स्कूल
नहीं, किसी अस्त्र-शस्त्र से नहीं
तुम्हारी उदासी से
हो जायेगी धरती नेस्तनाबूद
हँसो कि
दुनिया को तबाह करनेवाले
सिर्फ तुम्हारी हँसी से डरते हैं
वे अपने खिलाफ
तुम्हारी हँसी को
सब-से बड़ा प्रतिवाद मानते हैं
हँसो कि
जैसे ग्रहण छूटने पर हँसता है चाँद
हँसो कि
जैसे उदास माता की गोद में
हँसती है बच्चे की दंतुरित मुस्कान
उपमा कोई हो-न-हो
तुम हँसो कि
तुम अनुपम हो धरती संतान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें