यह आप ही की लीला है

यह आप ही की लीला है 


यह विडंबना ही है प्रभु
इस पर क्या कहें
सच तो यह है कि इसे
आप से बेहतर तरीके से
कोई कह नहीं सकता

मरते हैं हम जिसके अभाव से
मरते हैं हम उसके अतिरेक से भी
अन्न-जल हो, भजन-कीर्तन या कुछ और हो
हाँ प्रभु!
यही है आपकी लीला!
बचाते हैं जिससे मारते भी उसी से हैं!
और प्रभु, हम समझ ही नहीं पाते हैं
ठीक मरने और बचने के पहले तक कि
हम मारे जा रहे हैं या बचाये!

यह आप ही की लीला है प्रभु, आप ही जानते हैं!
हम क्या कहें... क्या कहें हम कि लोकतंत्र है
और हमें भी कुछ कहना है, कि यह आप ही की लीला है
या यह कहें कि प्रभु कि जो कहना है सो कह दिया! 

कोई टिप्पणी नहीं: