राजदार कभी बन नहीं पाया ना-राज क्या होना
यूँ
ही तो सफर पर निकला हूँ हमराज क्या होना
फुदकता
है पुरजोर दिल का उम्रदराज क्या होना
सुबह
भटक गयी, शाम के न आने पर, क्या रोना
नंगा
नहाया तो, क्या निचोड़ना और, क्या धोना
हँसी
लपेटकर निकलता, घर से बाहर क्या रोना
सुननेवाला
ही न है तो अब शिकायत क्या होना
रोटी,
न लंगोटी कब्जे में तो तिजारत क्या होना
भूख
जब जिंदगी की जंग, जनतंत्र का क्या रोना
कौन
किसको आजमाये, वफादारी का क्या होना
चेहरे
पर हँसी नहीं, फूल में खुशबू का क्या होना
कहीं
और चलें अब, यहाँ पर अब मेरा क्या होना
राजदार
कभी बन नहीं पाया ना-राज क्या होना
यूँ
ही तो सफर पर निकला हूँ हमराज क्या होना
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