चुनावी
राजनीति की पढ़ाई
आपको तो मालूम
ही है उन हठी बालकों के पास---
जिनके बारे में मशहूर था
कि इन राजकुमारों को कोई पढ़ा
नहीं सकता और राजा पढ़ाने के
हठ से हट नहीं सकते,
सो बाल-हठ
और राज-हठ का
खेल जारी था---
एक गुरू जी पहुँचे। उन्होंने
तरकीब लगाई। तरकीब के तहत
बालकों से दोस्ती गाँठी। छः
महीने लग गये,
दोस्ती चल निकली। उपयुक्त
समय देखकर गुरू जी ने छोटे
राजकुमार से पूछा मान लो
तुम्हारे पास तीन सेव हैं और
बड़े राजकुमार के पास दो सेव
हैं। तुमने एक सेव बड़े राजकुमार
को दे दिया तो तुम्हारे पास
कितने सेव बचे?
छोटे राजकुमार ने झट से
कहा, दो। फिर
उसने बड़े राजकुमार से पूछा
तुम्हारे पास कितने सेव हो
गये? बड़े
राजकुमार ने फट से कहा तीन?
गुरू जी ने फिर बड़े राजकुमार
से पूछा अब तुमने सारे सेव
छोटे राजकुमार को दे दिया तो
छोटे के पास कुल कितने सेव हो
गये? बस क्या
था, छोटा
राजकुमार चीख उठा---
भैया सावधान,
एकदम कोई उत्तर नहीं देना...
यह हिसाब पढ़ा रहा है!
गुरू जी को पकड़ कर,
पास में एक भी सेव नहीं है
और तब से सेवों के लेने-देने
का हिसाब किये जा रहे हो!
क्या मतलब सच-सच
बतलाओ हमें हिसाब पढ़ा रहे
हो? गुरू जी
ने कहा, नहीं
विद्या कसम मैं तुम लोगों को
हिसाब नहीं पढ़ा रहा हूँ। अब
दोनों राजकुमार सोच में पड़
गये, विद्या
कसम खाई है, झूठ
नहीं कह रहे हैं,
लेकिन कुछ-न-कुछ
तो पढ़ा रहे हैं जरूर!
तो फिर क्या पढ़ा रहे हैं?
दोनों ने तय किया और पूछा
कि अच्छा आप हमें हिसाब नहीं
पढ़ा रहे थे तो क्या पढ़ा रहे
थे? गुरू जी
ने कहा, मैं
तुम दोनों को राजनीति पढ़ा
रहा था, चुनावी
राजनीति। राजकुमारों ने कहा
हम तो राजकुमार हैं,
चुनावी राजनीति की पढ़ाई
हमारे किस काम आयेगी?
गुरू जी ने कहा कि तुम लोग
राजकुमार हो और राजकुमार ही
रहोगे। लेकिन राजनीति यही
नहीं रह जायेगी!
यह पढ़ाई तब काम आयेगी जब
'सच्चा जनतंत्र'
आ जायेगा क्योंकि उसमें
जो होता नहीं है,
उसी का हिसाब पढ़ा-पढ़ाया
जाता है!
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