मुल्क है निःशुल्क
और आँख नचाकर झूमकर
बोला मदारी
भाइयों और बहनों
मेरी मुट्ठी में क्या है
इधर,
बंदरों का नाच हो रहा था
भारी
उधर,
मजमा खमोश,
उदास त्रिपुरारी
फिर आँख नचाकर
झूमकर बोला मदारी
भाइयों और बहनों
मेरी मुट्ठी में क्या है
रंग-अबीर
नहीं, है
बच्चों की किलकारी
मुट्ठी में बंद
है, हवा,
और हवा बेचारी
सुर्रर्रर्र,
जब चाहूँ खोल दूँ,
हवा चला दूँ
हवा दंगे की,
हवा फसाद की,
विकास की
भाइयों और बहनों,
ये हवा बहुत है प्यारी
मान भी जाओ,
जो भी हो पास,
सब धरो
अब देखो यह छप्पन
इंच का चौड़ा सीना
अपना मरना,
मुर्दों के टीले पर मेरा
जीना
देखो-देखो
प्यारे दोनों आँख खोलकर देखो
डरो मुझ से तुम,
नहीं प्यार से तो डर से दो
जो है पास तुम्हारे,
रूप, रुपैया
नोट या वोट
हाँ करो समर्पण,
करो समर्पण,
करो समर्पण
जोर से गाओ गान
हिंदू तन-मन,
हिंदू जीवन
पीयो चाय और जो भी
है पास चुप-चाप
धरो
तेरा जीना क्या,
मरना क्या,
मेरी मुठ्ठी में क्या
अब थोड़ा-सा
आँख बचाकर झूमकर बोला मदारी
लो पीयो चाय,
लो चुस्की लो,
लोकतंत्र बस चुस्की है
सत्ता,
जनता की? अब
भी नहीं पता कि वह किसकी है
बस इतना अब भी मान
जाओ कि लोकतंत्र बस चुस्की
है
याद रहे,
भाइयो और बहनो,
मेरी मुट्ठी में मुल्क है
निःशुल्क
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