क्या गजब मेरे हिस्से में तेरी खामोशियाँ ही सही
जानता हूँ बोलती आँखों पर तेरा कोई काबू नहीं
ये जो सियासी बाँकपन है बाकी जम्हूरियत सही
है तभी तक महफूज आवाम जब तक बेकाबू नहीं
मुफीद नहीं वज्म में आकर तेरा कहना, नहीं नहीं
जनतंत्र में होता कोई चौधरी नहीं कोई साबू नहीं
यह फलसफा विकास है कोई जूआ नहीं जादू नहीं
उम्मीद थी जरूर पर तेरा, तुझ पर ही काबू नहीं
मेरे हिस्से टूटे ख्वाबों की तीखी किर्चियाँ ही सही
शीशे के टुकड़े को चुन लेता इस के आगे काबू नहीं
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