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देशज
भाषा में पुंसकोड का मतलब! पितृ सत्तात्मकता की भाषा के मर्दवादी रुझानों और मर्दवादी निर्मिति से है। यह रुझान और निर्मिति का ही कमाल है कि नागार्जुन जैसे कवि भी (अनजाने में ही सही) लिख जाते हैं :-
पाँच पूत भारत माता के, दुश्मन था खूंखार
गोली खाकर एक मर गया, बाक़ी रह गये चार
चार पूत भारत माता के, चारों चतुर-प्रवीन
देश-निकाला मिला एक को, बाकी रह गये तीन
तीन पूत भारत माता के, लड़ने लग गए वो
अलग हो गया उधर एक, अब बाकी बच बच गए दो
दो बेटे भारत माता के, छोड़ पुरानी टेक
चिपक गया है एक गद्दी से, बाकी बच गया है एक
एक पूत भारत माता का, कंधे पर है झंडा
पुलिस पकड़ के जेल ले गई, बाक़ी बच गया अंडा
(साभार :नागार्जुन : हज़ार हज़ार बाँहोवाली)
अब, कोई सवाल खड़े कर सकता या सकती है कि भारत माता के सिर्फ पूतों को लेखे में ही क्यों लेती है नागार्जुन की यह कविता! यह सवाल आलोचना के नजरिए से नहीं वितंडा की चालाकी से खड़ा होता है क्योंकि इसका संबंध कवि की सामाजिक चेतना से उतना नहीं है जितना कि भाषा की निर्मिति में सक्रिय पुंसकोड से है।
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