मुझे इस बात की चिंता हो रही है कि
भारत संघ की आंतरिक संरचना में विघटनकारी बदलाव हो रहे हैं। भारत का संविधान एक
विचार भी है और भावना भी। संविधान में निहित विचार विचार और भावना के अनुसार
स्वाभाविक और निरापद रूप से भारत संघ की आंतरिक संरचना संघात्मक है तो बाहरी
संरचना एकात्मक है। भारत संघ की आंतरिक और बाहरी संरचना की यह स्वाभाविकता विचलित
हो रही है। अब भारत संघ की आंतरिक संरचना एकात्मक और बाहरी संरचना संघात्मक
प्रवृत्ति की ओर तेजी से बढ़ रही है। मुझे गहरी आशंका है कि यह प्रवृत्ति हमें
बिखराव में डालकर भारत राष्ट्र की स्वाभाविकता को नष्ट कर देगी।
हमारी
राज्य/प्रांतीय सरकारों में कोई विदेश और प्रतिरक्षा मंत्रालय नहीं होता है। जाहिर
है,
हमारी
राज्य/प्रांतीय सरकारों की कोई विदेश और प्रतिरक्षा नीति भी नहीं होती है।
बहुराषट्रीय कंपनियों के कर्णधारों का मुख्यमंत्रियों के साथ बैठकों का सिलसिला चल
ही रहा था। इधर विदेशी राजनयिकों में हमारे मुख्यमंत्रियों के साथ बैठकों का
सिसिला भी तेजी से चल निकला है। बैठक होने की बात तो प्रचारित होती है लेकिन
स्वाभाविक रूप से इनकी राजनयिक चर्चा अति गोपनीय होती है। इस तरह की राजनयिक चर्चा
से विदेशी ताकतों का हमारे आंतरिक संदर्भों में पैठ और प्रभाव के बढ़ने की गहन
आशंका है। पैठ और प्रभाव के संदर्भ में 'विदेशी ताकतों' के अर्थ को
समझते हुए यह साफ लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब विदेशी प्रतिरक्षा विशेषज्ञ और
अधिकारी सीधे और अलग-अलग तरीके और स्तर पर राज्य/प्रांतीय सरकारों और वहाँ की जनता
से व्यवहार करेंगे। ऐसा हो ही सकता है कि कोई विदेशी ताकत किसी एक राज्य में मित्र
शक्ति की तरह आचरण करेगा तो दूसरे राज्य में इसका विपरीत आचरण कर सकता है। इससे
हमारे राज्यों के बीच में और फिर इनके रहनिहारों के बीच के रिश्तों में बदलाव
आयेगा जिससे संसाधनों के वितरण, बेहतर जीवन-स्तर की संभावनाओं और सम्यक
विकास के बीच का संतुलन और बिगड़कर खतरनाक हो जायेगा। हमारी राजनीतिक गुणवत्ता ऐसी
नहीं दिखती है कि स्थिति को न्यूनतम क्षति-स्तर पर सम्हाल लेने का भरोसा जगे।
तो
भारत संघ की स्थिति क्या संयुक्त परिवार के उस निःशक्त जर्जर बूढ़े की तरह होकर रह
जायेगी जिसकी कोई नहीं सुनता या मिथ के रूपक का इस्तेमाल करें तो धृतराष्ट्र की
तरह हो जायेगी जो अंततः व्यवस्था को बिखराव से बचा नहीं सका। चिंता इसलिए भी हो
रही है कि यह सब आम चुनाव के ठीक पहले बहुत जोर पकड़ रहा है। पहले भी संकेत करता
रहा हूँ,
लेकिन
इस समय मुझे इस बात की बहुत चिंता हो रही है, आप क्या कहते
हैं?
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