बस बुदबुदाता हूँ

प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan

जी हाँ आपको नहीं खुद को ही फुसलाता हूँ
जो बात डूब रही होती है निकाल लाता हूँ

इस तरह आवाम का टूटा दिल बहलाता हूँ
इस मौसम में कागज पर, फूल खिलाता हूँ

हर जहरीली हवाओं से साँस को बचाता हूँ
जब खुद को खोता, तुम को करीब पाता हूँ

मैं वह दुख हूँ जो रोज खुद को दुरदुराता हूँ
आजकल कहीं जाता हूँ, न कहीं से आता हूँ

कातिल के लिए खुद ही खंजर ढ़ूढ़ लाता हूँ
जान की खैरियत के लिए बस बुदबुदाता हूँ

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