प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan
मैं गिलहरी की तरह दरिया को बाँध रहा हूँ
इन दिनों का धीरज सरहद को लाँघ रहा हूँ
यही है आजादी जिसके बल पर फाँद रहा हूँ
हाँ थोड़ा कमजोर हूँ पर कभी फौलाद रहा हूँ
कुछ भूल गये वे कम क्या जो तुझे याद रहा हूँ
पस्त हूँ, मगर मैं ही मुल्क की बुनियाद रहा हूँ
सोने की चिड़िया पिंजरे में मैं तो बर्बाद रहा हूँ
मैं कटी जुबानों का श्लोक नहीं फरियाद रहा हूँ
इतिहास कहता है कि कभी नहीं उन्माद रहा हूँ
मैं व्याकारण का धीरज, सरहद को लाँघ रहा हूँ
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अमनदीप सिँह, Priyanka Thakur, Arvind Kumar Tiwari और 14 अन्य को यह पसंद है.
Bal Mukund Pathak बहुत हीँ उम्दा रचना ।
6 अक्टूबर को 01:38 अपराह्न बजे · पसंद
मैं गिलहरी की तरह दरिया को बाँध रहा हूँ
इन दिनों का धीरज सरहद को लाँघ रहा हूँ
यही है आजादी जिसके बल पर फाँद रहा हूँ
हाँ थोड़ा कमजोर हूँ पर कभी फौलाद रहा हूँ
कुछ भूल गये वे कम क्या जो तुझे याद रहा हूँ
पस्त हूँ, मगर मैं ही मुल्क की बुनियाद रहा हूँ
सोने की चिड़िया पिंजरे में मैं तो बर्बाद रहा हूँ
मैं कटी जुबानों का श्लोक नहीं फरियाद रहा हूँ
इतिहास कहता है कि कभी नहीं उन्माद रहा हूँ
मैं व्याकारण का धीरज, सरहद को लाँघ रहा हूँ
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