जाने डेमोक्रेसी कितना और रुलायेगी

ख्वाहिशों की बात जो, ख्वाबों से सम्हल न पायेगी
सिंथेटिक मुस्कान है, मुहब्बत आँसू कहाँ से लायेगी

सिढ़ियों पर आँसू गिरे हैं, यह बात याद न आयेगी
जाने डेमोक्रेसी, दुनिया को कितना और रुलायेगी

कातिल है बहुत खुशमिजाज उसकी अदा बुलायेगी
ख्वाहिशें हैं बेलगाम ये हमारे खून से घर सजायेगी

जज्वात के हैं हौसले बुलंद, यह खुशी काम आयेगी
तूफान नहीं, नई रौशनी ही जिंदगी बिखेर जायेगी

ये बात इश्किया है तुम नादान, समझ में न आयेगी
ये दुनिया का रिवाज दुनिया हर बात पर रुलायेगी

कोई टिप्पणी नहीं: