आओ हे नवजीवन, जीवनकी तरह आओ
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उम्र के इस कगार पर जब शुरू होता है,
पाई हुई जिंदगी को खोने का सिलसिला
अमूमन शुरुआत केश की सुरमई चमक के खो जाने को
छुपाने में हुई चूक से होती है
दाँत में माँद बनते हैं,
हर नागवार बात पर भिंच जानेवाला जबड़ा
पड़ जाता है ढीला
फिर आँख की ज्योति की आती है बारी,
कभी पास नहीं दीखता है तो कभी दूर नहीं
हसरतें दम तोड़ती हैं, सपनों के रंग काफूर होते हैं,
आशा की डोर हो जाती है ढीली
हर वह कसाव जो देता है आगे बढ़ने का
रंग भरा साहस और मनोबल,
पड़ जाता है ढीला
पुरानी पड़ जाती है साइकिल,
बहुत मुश्किल से घूमता है,
हाँफता हुआ चक्का
हर सीवन उधड़ने लगती है,
जिंदगी के झोले का मुँह
नीचे से खुलने लगता है
कभी धीरे से तो तेजी से कभी,
सौदा हो या सौगात नीचे से निकल
बाजार में बिखर जाता है
मेला उठने लगता है,
पूजा और पुजारी,
फूल और प्रसाद बासी पड़ जाते हैं,
देवता रूठ जाता है
उम्र के इस कगार पर,
तुम आओ इस मरू जीवन में
वह कंधा बनकर जो उठा सके,
गये जमाने के खोये हुए
तमाम ख्वाबों का बेतरतीब बोझ
आओ वह एहसास बनकर,
जिसके होने से सुरमई चमक लौट आये,
मेंहदी की नई चमक की तरह
जिसके होने से चमचमा उठे भरोसा,
सब्ज हवा के सुर-ताल में,
लहराते सूरजमुखी की तरह
आओ छलछलाते आँसू को
चुन लेनेवाले जवान पलकों पर मचलते
मजबूत इरादों की हसरतों की तरह
आओ होठों की फटन पर
फिरते रफूगर की अँगुलियों के
उनींदे ख्वाब की गहरी मुसकान के
पैबंद की तरह आओ
आओ पुराने टायर की ट्यूब में
नई हवा की तरह आओ
अपनी धुरी पर घूमती धरती के
अथक उल्लास की तरह आओ
ज्यौं की त्यौं नहीं धरी जा सकी चादर
इसके हर ताना, हर बाना,
हर सीवन को दुलराते रंगों की तरह आओ
खोने-पाने का सिलसिला जीवन है,
ऐसे जीवन में
हौले से आओ जंगल में उतरते चाँद की तरह
स्वागत हे नवजीवन
तुम आओ मगर डाली से टूटकर
पत्थर पर चढ़नेवाले फूलों की तरह नहीं
वन-उपवन में फैले गंध की तरह जिसके होने से
घनघोर अंधेरे में भी देवता मन में बिहुँसते हैं
बिना किसी आहट के उतरो इस जीवन में
गाय के थन में उतरनेवाली
दूध की पहली बूँद की तरह
आओ हे नवजीवन, उम्र के इस कगार पर
शिशु के पहले कदम की बेचैनी की तरह
चलो जैसे चलते हैं गंगा के टूटे दो किनारे
हिमालय से सागर तक, सागर से गागर तक
हर शोर को लाँघते हुए,
अफवाहों को झुठलाते हुए,
आओ हे नवजीवन
जीवन की तरह आओ
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