मुबारकबाद

मुबारकबाद

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वे भी मनुष्य हैं

उनका भी परिवार है

माँ-बाप, बेटे-बेटियाँ

भाई बहन बचपन के दोस्त

शिक्षक, दोस्त-यार, प्रेम के विस्मृत धागे

बूढ़ा लाब्रेरियन, पसंदीदा कलाकार

वे भी मनुष्य हैं, उनके साथ, आगे पीछे

वह सब होता है, जो होता है हमारे साथ

जब दहलता है देश थोथी दहाड़ से

जब धू-धूकर जलता है

साधु चरित शुभ चरित कपास

नफरत में सिसक रहा होता है आस-पास

मन उनका भी बहुत बिलखता होगा

रह-रहकर बिखर जाता होगा

उनके भी अंदर बहुत कुछ

हो जाता होगा रंग फीका-फीका

मन में उठता होगा हाहाकार

उन्हें भी बर्दाश्त करना होता होगा अहंकार

सब कुछ के बीच से गुजरना होता होगा बारंबार

वे जो प्रयोगशालाओं में निष्कंप आँख

सतत सक्रिय प्रज्ञा के साथ झुके रहते हैं

झुके रहते हैं कि तनकर खड़ा रह सके देश

वे जो शिखर से ले कर सागर तक

यहाँ से लेकर वहाँ तक अंगद की तरह डटे रहते हैं

डटे रहते हैं कि डटा रहे देश निर्भय

ऐसे ही बहुत सारे लोग, बिना ध्यान भटकाये

लगे रहते हैं, अपनी-अपनी जगह

लगे रहते हैं कि मनुष्यता के लिए कम न पड़े जगह

आज का दिन उनको मुबारकबाद देने का है

यकीनन वे सोचते होंगे देश के बारे में

हम सब के बारे में,

जब वे सोचते होंगे अपनों के बारे में

वे जानते होंगे यहाँ का हाल

ओझल न होगा आँखों से, न आटा, न दाल

आज का दिन उनको मुबारकबाद देने का है

 

       

 

 

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