गुलामी और आजादी

गुलामी और संबंध का अंतर
▬▬
बँधे होने और जुड़े होने में अंतर है। यह अंतर बहुत आसानी से दिखता नहीं है। बल्कि इनमें अंतर ही नहीं विरोध भी होता है। पूरी प्रकृति, सृष्टि एक अपर से जुड़ी हुई है या फिर जुड़ने का विकास है। इसे हम अक्सर गलती से इस तरह समझने लगते हैं कि पूरी प्रकृति, सृष्टि एक दूसरे से बँधी हुई है या फिर बँधने का विकास है। प्रेम में हम जुड़ते हैं, बँधते नहीं हैं! जुड़ाव जब बंधन में बदलने लगता है तब मन में बहुत उपद्रव मचता है। अपर्याप्त किंतु उपयुक्त उदाहरण! प्रेम जुड़ाव है, विवाह बंधन। इसलिए प्रेम जब विवाह में बदलता है तो जो असुविधा उत्पन्न होती है वह असल में, जुड़ाव के बंधन में बदलते जाने से पैदा होती है। जो लोग जुड़ाव को बंधन में बदलने को रोकने में जाने-अनजाने जितना कामयाब रहते हैं, वे प्रेम को बचाने में उतना ही कामयाब होते हैं। बंधन स्थिति है, जुड़ाव गति है! जीवन स्थिति में गति और गति में स्थिति से संभव होता है। पूरी प्रकृति गतिशील भी है और स्थितिशील भी; चर (variables) और (constants), जड़ और जंगम से समृद्ध है। बँधे होने और जुड़े होने का अंतर साफ न हो तो गुलामी और संबंध का अंतर साफ नहीं रहता है, हम भयानक मानसिक उपद्रव के शिकार होते रहते हैं।

पशु होने का लक्षण
▬▬▬
हम अपनी भाषा को कितना कम जानते हैं! पशु का अर्थ क्या होता है! हम किसी के गलत व्यवहार को पाश्विक कहते हैं। समझदार आदमी तुरत आपत्ति करता है। पशु ऐसा आचरण नहीं करता, फिर इसे पाश्विक क्यों कह रहे हैं? हम शर्मिंदा होते हैं, कम-से-कम निरुत्तर, कि सही तो कह रहा है! इस तरह से हमारा शर्मिंदा और निरुत्तर होना हमारे अज्ञान से जुड़ा होता है। हम नहीं जानते कि प्राथमिक रूप में पशु किसे कहते हैं! हम मनुष्येतर बड़े प्राणी को पशु समझते हैं! पाश का अर्थ होता है, बंधन। जो बंधन को बिना किसी प्रतिवाद के सहज भाव से स्वीकार और अंगीकार कर लेने का अभ्यासी है, वही पशु है। खूँटा से बँधा! बँधा यानी आगे बढ़ने से रुका हुआ ▬ बद्ध। पशु की तरह का आचरण का अर्थ, मनुष्येतर बड़े प्राणी की तरह का आचरण नहीं होता है। पशु की तरह का आचरण अर्थात ऐसा आचरण जो व्यक्ति, समुदाय, समाज और मानवीय सभ्यता को आगे बढ़ने से रोकता है, गुलामी में डालनेवाला होता है। गुलामी में आनंद खोजना पशु होने का लक्षण है।

चपेट और लपेट से मुक्त
▬▬▬
औपनिवेशिकता के प्रभाव बहुत सूक्ष्म होते हैं, खास कर भाषा के मामले में। भारत में एक स्तर के लोग जो अंगरेजी में कही बात को अंगरेजी में समझ लेते हैं वे औपनिवेशिक होते हैं। वे लोग जो अपनी भाषा में कही बात को सिर्फ अपनी भाषा में समझते हैं वे औपनिवेशिकता से परे (beyond) होते हैं। वे लोग जो अपनी भाषा  वे सभी जो अपनी भाषा में कही बात को अंगरेजी में और अंगरेजी में कही बात को अपनी भाषा में समझते हैं, औपनिवेशिक मानसिकता की गहरी चपेट में होते हैं। देखिये न मुझे परे के साथ ही beyond कहना पड़ा, समझ सकते हैं कि मैं औपनिवेशिकता की कितनी गहरी चपेट में हूँ! जिन्हें इस तरह का प्रसंग नहीं व्यापता है, वे औपनिवेशिक मानसिकता की चपेट में ही नहीं, लपेट में भी होते हैं! विकास का मतलब औपनिवेशिक मानसिकता की चपेट और लपेट से मुक्त होना है!

कोई टिप्पणी नहीं: