अपना कद इतना न बढ़ा
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अपने कद को इतना न बढ़ा कि अपना वजूद अपने पैरों तले ही कुचला जाये
दिल दिमाग है काबू से बाहर इस कदर, डर है मुस्कान न कुम्हला जाये
बेरुखी हवा की क्या कहिये, मुश्किल है जो किस कदर अब सम्हला जाये
हवा हुए वे दिन तो कब के, जो तेरी त्यौरियों पर भी थोड़ा मचला जाये
कसूर तेरा नहीं इस मौसम में तो कोई भी, कातिल हँसी पर पगला जाये
कातिलों के जश्न में मकतूल भी शामिल किस कदर, मन कोई बहला जाये
हादसे होने को अभी और भी हैं ऐ दिल, सम्हल अभी से क्यों दहला जाये
शैतान है दिल दिमाग जुबान पर सवार, क्या पता कब क्या कहला जाये
नदियों में सूखता पानी आँखों में भी, कैसे कोई आँसुओं से नहला जाये
अपने कद को इतना न बढ़ा कि अपना वजूद अपने पैरों तले ही कुचला जाये
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