सच जिनका दावा है कभी

सच, जिनका दावा है कि कभी नजदीक हुए नहीं उनके
मैं उनके ही दूर हो जाने के दुख का इकबालिया बयान हूँ

सदियों से जारी इस सफर में सभ्यता के हर मुकाम पर
मैं मंजिल नहीं, आकुल-व्याकुल, थके प्राण का प्रस्थान हूँ

वह मुहब्बत एक शब्द है उम्दा किताबों का बड़ा प्यारा
उन उम्दा किताबों के पन्नों का दुख पगा छोटा गान हूँ

सच तू न माने या न माने, दुनिया को कोई खबर नहीं
और बाकी बातों का क्या, अभी बंद कोयला खदान हूँ

सारी जिंदगी पहाड़ों में गुजरी हो जिसकी, मैं उसकी
आँखों में ठिठकी-सी खामोशी की हाँफती हुई ढलान हूँ

अपनी झुर्रियों से कोई शिकायत क्या करे जो कोई अब
मैं तो, उन हजारों रुसवाइयों का, ढह चुका दालान हूँ

सच, जिनका दावा है कि कभी नजदीक हुए नहीं उनके
मैं उनके ही दूर हो जाने के दुख का इकबालिया बयान हूँ

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