पाकिटमारी
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लोकल ट्रेन के नित्य-यात्री के
मनो-स्वभाव पर सोचते हुए
उत्तेजक बहसों और मंतव्यों के ब्यूह से बाहर
जब प्लेटफॉर्म पर पैर रक्खा तो
उसके दिमाग में कुछ भी साफ नहीं था
आधी उम्र कट जाने के बाद
उसने अपने दिमाग के बारे में ही
सोचना शुरू कर दिया शिद्दत से
और इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि
उसके दिमाग में कभी कुछ भी साफ नहीं रहा
सोचने के काम से दूर ही रहना चाहिए
इस तरह सोचते हुए वह घबड़ा-सा गया
वह आस-पास की चीजों से
बहुत दूर खिंचा चला जा रहा था
एक अजाने प्रदेश में
एकदम ऐसी वीरानी की तरफ
जिसके बारे में उसने कभी सुना तक नहीं था
अपनी दादी के पोपले मुँह से सुनी
दंतकथाओं में भी नहीं
वह ना-जीवन-ना-मृत्यु के
वर्जित- प्रदेश के प्रवेश-द्वार से लग गया था
चेहरे पर पसीने की बूंदें छल-छला आयी थीं
सोचना ही होगा उसे
वर्जित-प्रदेश की नागरिकता से
बचना चाहता है फिलहाल
कम-से-कम इस समय तो
उसे एक मौका मिलना ही चाहिए
उसने युगानुरूप विशेष प्रार्थनाओं में से
किसी भी प्रार्थना की किसी पंक्ति को
याद करना चाहा
इस खतरनाक समय में किसी ने उसे
भीड़ की तीखी गंध से
मातृभाषा में पुकारा
धीरे-धीरे उसके आस-पास
संतोष की एक महीन झिल्ली उभरने लगी
इसे सिर्फ वही पढ़ सकता था शायद
तभी जैसे किसी ने
उसका हाथ मजबूती से पकड़ा
रामदूत कि यमदूत?
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