मेरी अक्ल पर पत्थर पड़े

मेरी अक्ल पर पत्थर पड़े
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सच्चा आशिक और समर्थक तो वही होता है, जो अंत तक इंतजार करे।
और किसी भी सूरत में, अंत का दोषारोपण अपने महबूब पर न करे।


जिसके इंतजार का हौसला अध-बीच में ही न टूट जाये, जीये या मरे।
सच्चे महबूब को हाँ, रत्ती भर भी कोई फर्क न पड़ा है और न कभी पड़े।


यही तो इम्तिहान है, कि उसीके के नाम पर सुबह-शाम, सबसे झगड़े।
उस पर सदा नरम रहे, न कभी जरा भी गरम हो और न कभी उखड़े।


उसे तुक बहुत पसंद है, मैं तुक मिला रहा हूँ, मेरी अक्ल पर पत्थर पड़े।

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