फरमाइशी लेखन
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साहित्य लेखन चेतन और अ-चेतन की साझी भाषिक प्रक्रिया है। न तो पूर्णतः चेतन प्रक्रिया है और न ही पूर्णतः अ-चेतन प्रक्रिया▬▬ साहित्य लेखन में चेतन और अ-चेतन की अंतर्क्रिया शामिल रहती है। चेतन में व्यक्ति और अ-चेतन में समष्टि का अपेक्षाकृत अधिक दखल होता है। साहित्य लिखते समय खुद लेखक को, ठीक लिखते समय, खुद भी पता नहीं होता है कि वह जो लिख रहा है, ठीक उसका क्या-क्या अर्थ है, जैसे किसी के साथ व्यवहार करते हुए व्यवहार करनेवाले को खुद भी पता नहीं होता कि वह जो व्यवहार कर रहा है उसके मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य की क्या व्याख्या है।
फरमाइशी लेखन! लेखन की शुरुआत के पीछे किसी-न-किसी तरह की और किसी-न-किसी की फरमाइश भी होती है▬▬ कभी अपने अंदर की, कभी अपने जैसे किसी और की, अपने समय की... और अक्सर इन सब की एक साथ। गौर से देखें तो, प्रेरणा फरमाइश के अलावे और हो ही क्या सकती है! गलत है, अपना कोई मतलब गाँठने के लिए फरमाइश के मिजाज को तुष्ट करने के लिहाज से लेखन की अंतर्वस्तु में आयासपूर्वक गुणात्मक बदलाव को संयोजित और समायोजित करना।
Radheyshyam Singh वाह!बाजार का दखल विचारो की दुनियाँ पर इस तरह तारी है कि अंतःप्रेरणा और फरमाइश के बीच खीची गई स्पष्ट लकीरे अब मिटने को तैय्यार हैं।
प्रफुल्ल कोलख्यान Radheyshyam Singh सर टिप्पणी के लिए आभार। आपने इस वाक्य पर भी जरूर ही गौर किया होगा..'गलत है, अपना कोई मतलब गाँठने के लिए फरमाइश के मिजाज को तुष्ट करने के लिहाज से लेखन की अंतर्वस्तु में आयासपूर्वक गुणात्मक बदलाव को संयोजित और समायोजित करना।'
Radheyshyam Singh हाँ गौर किया था।इसकी समानान्तरता का विचार आना ही किसी ठोस शक्ति का दबाव लगा।भवानी भाई की कविता गीतफरोश की याद आई तो लिख दिया।मै जानता हूँ कि यह पोस्ट कुछ नए तरह की सोच का अभिव्यक्तिकरण था।फिर भी यह सटान अंततः वैसे तत्वो को मदद पहुँचाएगी जो फरमाइशी लेखन मे व्यस्त है,और जो हमसे-आपसे यही सुनना चाहते हैं।इस पोस्ट से वे अपने काम की चीज निकाल कर उधृत कर देंगें।मेरा खास कोई मतलब नही था,वैसे भी मै आपके लेखन का प्रशंसक हूँ।धन
प्रफुल्ल कोलख्यान Radheyshyam Singh सर आपकी आशंका सही है, आपने प्रेरणा को अंतःप्रेरणा के रूप में पढ़ा... इसीलिए आप इस निष्कर्ष पर पहुँचे▬▬ 'अंतःप्रेरणा और फरमाइश के बीच खीची गई स्पष्ट लकीरे अब मिटने को तैय्यार हैं।' मेरे लेखन का आप प्रशंसक हैं, आपकी प्रशंसा मेरे लिए प्रेरणा के रूप में उपस्थित होती है; और हाँ, आपकी प्रशंसा का प्रेरणा के रूप में उपस्थित होना बिना किसी 'बाजार' के दबाव के संभव होता है। वैसे साहित्य लेखन की प्रक्रिया पर भी कुछ बोलते तो और भी प्रेरित होता। धन्यवाद..
Ranjana Dubey chetan awasta me koi insaan jitana jaada imagination kar sakta hai wahi achanak ek susarjit roop me samne aata hai arthat chetan awasta me hua anubhav hi aochetan awasta me prakat hota hai..
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