प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan
यह उसका
देश है
वह
कौन लगता
है हमारा
गुदड़ी
में लिपटा हुआ
हर रोज
गुजरता है जो
इस गली
से
कुछ-कुछ
बुद-बदाता हुआ
अब
गुदड़ी और
सूट के
बीच
बुझारत
के लिए
रिश्ते
की कौन-सी
जमीन शेष
है
वह कौन
लगता है
हमारा
आपका हम सबका
उसे किस
भाषा में
बतायें
कि उसे प्यार करना चाहिए
यह उसका
देश है
हमारी
कविता में लगभग जबरन
वह आदमी
दाखिल होता है
और पूछता
है कि
चीथड़े
की बीमारी का
कोई
शर्त्तिया इलाज है
थान के
पास
पूछता है
कि वह
कौन लगता
है
हमारा,
आपका, हम सबका,
इस देश
का
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