चमचमाते श्ब्दों में भी ओ बात कहाँ
कई दिनों के बाद खुला दरवाजा
हर चीज पर जमी है धूल बेहिसाब
डाकिये को धन्यवाद कि बंद दरवाजे की फाँक से
फेंकता रहा है पत्र बिना यह सोचे कि
इनके अर्थ खो जायेंगे
वे दिन और थे जब
पत्रों के श्ब्द और अर्थ में कोई अंतर नहीं आता था
उन पर निरंतर झड़ते धूल से
पढ़ो कलेजे से लगाकर सौ-हजार बार
उसके अर्थ वैसे ही लौट आते थे बारबार
जैसे बच्चे लौट आते थे स्कूल से
लेकिन वे दिन बीत गये
चमचमाते श्ब्दों में भी ओ बात कहाँ
धूल का झड़ना बढ़ता ही गया है,
मैं अपने से पूछता हूँ, पड़ोसी से पूछता हूँ
ऐसे पत्र को पाये हुए कितने दिन हो गये
जिनहें पढ़कर आप रोये एक बार,
बात किये अपने रुआँसे मन से
या मंद-मंद मुस्काये
और कलेजे के पास दबा लिया थोड़े जतन से
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Ravi Shankar Pandey, Leena Malhotra, Chaturved Arvind और 4 अन्य को यह पसंद है.
Pinkee Kanti Sathay kathan,sir.
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Leena Malhotra Behtareen
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