अनातिक्रमित मनुष्यता में मनुष्य का हित
26 जुलाई 2014 पर 05:33 अपराह्न
बदलाव प्रकृति का नियम है। यह बदलाव धीरे-धीरे होता है। विज्ञान भी बदलाव में योगदान के लिए महत्त्वपूर्ण है। बदलाव के लिए शक्ति चाहिए। प्रकृतिक बदलाव की शक्ति प्रकृति के पास होती है। वैज्ञानिक बदलाव की शक्ति मनुष्य अर्जित करता चलता है। विज्ञान के बदलाव में तेजी होती है। जितनी शक्ति में बदलाव में उतनी तेजी। तेजी से बदलाव में प्रकृति के धीरे-धीरे बदलाव के नियम का शक्ति के उपयोग से अतिक्रमण होता है, जबर्दस्ती होती है। वस्तु के साथ व्यवहार में शक्ति के उपयोग एवं अतिक्रमण और जबर्दस्ती की यह वैज्ञानिक प्रवृत्ति मानवीय स्वभाव का हिस्सा बनने लगती है। वस्तु के साथ व्यवहार में शक्ति के उपयोग, अतिक्रमण और जबर्दस्ती की यह वैज्ञानिक प्रवृत्ति मनुष्य के प्रति व्यवहार में शक्ति के उपयोग, अतिक्रमण और जबर्दस्ती की वैधता रचने लगती है। मनुष्य बदलने लगता है। बदलकर वह मजदूर, किरानी, डॉक्टर, वैज्ञानिक, वकील, नेता, पूँजीपति, दार्शनिक, कवि, अभिनेता, खिलाड़ी, बुद्धजीवी और बहुत कुछ बनता जाता है; यह सब अंततः मनुष्यता के अतिक्रमण से ही संभव होता है। किसी सोच का वैज्ञानिक होना काफी नहीं, असल परख यह कि वह मानवीय है कि नहीं। मानवीय होने का मतलब! मानवीय होने का मतलब विज्ञान-विरोधी होना नहीं है। मानवीय होने का मतलब है मनुष्यता को अतिक्रमित करनेवाली शक्ति के प्रतिषेध की क्षमता से संपन्न होना है और वस्तु के साथ व्यवहार में शक्ति के उपयोग, अतिक्रमण और जबर्दस्ती की वैज्ञानिक प्रवृत्ति के मनुष्य के प्रति व्यवहार तक फैलने में अवरोधक होना है। क्या ऐसा सोचना विज्ञान विरोधी होना है? विज्ञान विरोधी होने और मनुष्य विरोधी होने में से किसी एक को चुनना पड़े, तो मैं तो यही कहूँगा कि आपका प्रश्न बाइनरी (binary जो विज्ञान की शैली है 0 / 1.. श्वेत/श्याम... हाँ/ना..) मिजाज का होने के कारण मेरे लिए अवैध है। हाँ, यह कह सकता हूँ कि मैं हर हाल में अनातिक्रमित मनुष्यता में मनुष्य का हित चुनूँगा।
Suresh Upadhyay, संजय कुमार मिश्र, Rajesh Kumar Yadav और 8 अन्य को यह पसंद है.
Neer Gulati परिवर्तन प्रकृति और इतिहास का गुण है. मनुष्य प्रकृति और इतिहास के जिस नियम को समझ लेता है वो विज्ञानं का नियम बन जाता है वरना प्रकृति और इतिहास मनुष्य के लिए रहस्य ही बने रहते हैं.
26 जुलाई पर 05:38 अपराह्न · पसंद
प्रफुल्ल कोलख्यान Neer Gulati सर, अखंडित 'मनुष्य' के संदर्भ में आपकी बात अर्थपूर्ण है। मैं तो उस अतिक्रमित मनुष्य की बात कर रहा हूँ... खुद शक्ति-संपन्न मनुष्य ही रहस्य बन गया है... थोड़ा और विचार करें... कृपया, इसे हड़बड़ी में न पढ़ें...
26 जुलाई पर 05:45 अपराह्न · पसंद · 1
Neer Gulati मनुष्य एक जातिसूचक शब्द है. अखंडित मनुष्य को अवधारणा नही हैं, हाँ किसी नशेड़ी व्यक्ति के विषय मैं जरूर इस शब्द का प्रयोग किया जा सकता हैं.
26 जुलाई पर 05:49 अपराह्न · पसंद
प्रफुल्ल कोलख्यान Neer Gulati मैंने आप से अनुरोध किया न सर... कृपया, हड़बड़ी में न पढ़ें... आप प्रफुल्ल कोलख्यान को पढ़ रहे हैं...
26 जुलाई पर 05:52 अपराह्न · पसंद · 1
Neer Gulati ऐतिहासिक विकास की अंतर्वस्तु श्रम के विभेदीकरण और एकीकरण की पर्किर्यां है. आप का अंतिम वाक्य पूरी तरह से अव्यवहारिक है.
26 जुलाई पर 06:15 अपराह्न · पसंद
प्रफुल्ल कोलख्यान Neer Gulati कृपया, वाक्य लिखें...
26 जुलाई पर 06:18 अपराह्न · पसंद
Neer Gulati मैंने पहले ही कहा था मनुष्य जाति सूचक पद है. दूसरा मैं आपके अंतिम वाक्य के आधार पर आपको आदर्शवादी कहना पसंद करूंगा.
26 जुलाई पर 06:19 अपराह्न · पसंद
Neer Gulati यह हम सब जानते हैं की विकास हो रहा है और उसका सिर्फ सकारात्मक पक्ष ही नही नक्कारात्मक पक्ष भी है. लेकिन समस्या यह है की हम नक्कारात्मकता को पसंद नही करते. दूसरी और वह विकास का अनिवार्य पक्ष है. इसलिए एक समय की बुराई दूसरे समय मैं अच्छे बन जाति है. और इस बुराई से अच्छे का पैदा होने मैं ही मानवीय श्रम छिपा हुआ होता है.
26 जुलाई पर 06:23 अपराह्न · पसंद
प्रफुल्ल कोलख्यान Neer Gulati आप मार्क्सवादी हैं?
26 जुलाई पर 06:23 अपराह्न · पसंद
Neer Gulati नही प्रचलित अर्थ मैं मैं किसी वाद का अनुयायी नही हूँ. मेरा अपना अनुभव है.
26 जुलाई पर 06:24 अपराह्न · पसंद
प्रफुल्ल कोलख्यान आप मानते हैं कि मनुष्यता अखंडित है?
26 जुलाई पर 06:25 अपराह्न · पसंद
Neer Gulati मैंने जब से इतिहास को समझना शुरू किया तो सबसे पहले इसी प्रश्न का उत्तर ढूंढा की मनुष्य क्या है.
26 जुलाई पर 06:25 अपराह्न · पसंद
Neer Gulati मनुष्यता खंडित है और इसलिए गतिशील है. अखंडित होता तो विकास नाम की कोई चीज़ ही नही होती.
26 जुलाई पर 06:27 अपराह्न · पसंद
प्रफुल्ल कोलख्यान किसी वाद का अनुयायी नही हैं यह तो अच्छी बात है, मनुष्यता के खंडित होने और विकास में क्या संबंध है..?
26 जुलाई पर 06:29 अपराह्न · पसंद
Neer Gulati मनुष्य क्या है. मैं यहाँ अपनी परिभाषा दे रहा हूँ. मनुष्य यौन संबंधो पर आधारित, श्रम विभाजन के सिद्दांतो पर संघटित और प्रतिनिदित्व के नियमो के अंतर्गत चलने वाली एक जाति है.
26 जुलाई पर 06:34 अपराह्न · पसंद
Neer Gulati अगर आप अखंडित मनुष्य पद का प्रयोग करते हैं तो फिर उसकी प्रतिनिधि संस्था uno है.
26 जुलाई पर 06:35 अपराह्न · पसंद
प्रफुल्ल कोलख्यान Neer Gulati 'एक जाति' है तो खंडित कैसे है? uno पर ये आपके विचार हैं। बाबा साहेब ने एक संदर्भ में 'श्रम विभाजन' को श्रमिक विभाजन कहा था, ध्यान में है?
26 जुलाई पर 06:37 अपराह्न · संपादित · पसंद · 1
Neer Gulati जाति पद का अर्थ तो सामान्य गुणों से हैं. मनुष्य होने के नाते तीन सामन्य गुण हैं. यौन, श्रम और चिंतन. यदि चिंतन को भी श्रम का रूप मान लिया जाये तो दो गुण ही रह जायेंगे. यानि जिसमे यह दो गुण हैं वो मनुष्य है. शेष इन्ही गुणों का विस्तार और स्तर है जो व्यक्तियों, समूहों, समुदायों, राष्ट्रों के रूप मैं अभिव्यक्त होता है.
26 जुलाई पर 07:05 अपराह्न · पसंद
प्रफुल्ल कोलख्यान Neer Gulati अमीरों, गरीबों, शोषितों, वंचितों, शोषकों, वंचकों, जातियों, गोरों, कालों, स्त्रियों, पुरुषों आदि में नहीं बँटता? ऊपर जो लिखा है, 'मनुष्य बदलने लगता है। बदलकर वह मजदूर, किरानी, डॉक्टर, वैज्ञानिक, वकील, नेता, पूँजीपति, दार्शनिक, कवि, अभिनेता, खिलाड़ी, बुद्धजीवी और बहुत कुछ बनता जाता है; यह सब अंततः मनुष्यता के अतिक्रमण से ही संभव होता है।' इसके बारे में क्या राय है आपकी सर?
26 जुलाई पर 07:11 अपराह्न · पसंद · 1
Ram Murari मानवीय होने का मतलब! मानवीय होने का मतलब विज्ञान-विरोधी होना नहीं है। मानवीय होने का मतलब है मनुष्यता को अतिक्रमित करनेवाली शक्ति के प्रतिषेध की क्षमता से संपन्न होना है और वस्तु के साथ व्यवहार में शक्ति के उपयोग, अतिक्रमण और जबर्दस्ती की वैज्ञानिक प्रवृत्ति के मनुष्य के प्रति व्यवहार तक फैलने में अवरोधक होना है... बिल्कुल सही कहा है आपने... अगर विज्ञान और बदलाव मानवीय नहीं है तो वह विध्वंसक और मानवता को क्षति पहुंचाने वाला ही होता है...
27 जुलाई पर 10:25 पूर्वाह्न · नापसंद · 1
Haridev MP अदम्य इच्छा सृजन भी करती हैं और विध्वंस भी । जिसे अँगरेज़ी में ड्राइविंग फ़ोर्स कहते है वह चेतना के अभाव में आक्रामक होकर हिंस्र पशुता जैसा व्यहार करती है । मेरी प्रतीति यह भी है कि व्यक्ति अपने अनजानेपन में भी शब्द और व्यवहार से हमला करता है । दैनन्दिन का सार्वजनिक जीवन इस अनुभव से रूबरू होता है । दबंगई खदेड़ती है । उसके लिए मानवीय मूल्य अर्थहीन हैं । यह सृजन का हिंसक रूप है या व्यक्ति के तमस का प्रतिफल है ? यह विजय है या पराजय । यह प्रबल प्रभुत्वपूर्ण व्यहार हिंसा रचता है । असहाय निरुपाय है ।
12 घंटे पहले · नापसंद · 1
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