प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan
धरती ऊर्वरा है
धरती ऊर्वरा है
इसी धुआँस की कोख से
निकलेगा
नया सूरज
यह सच है कि
आकाश जब कभी
सिकुड़ता है
सबसे पहले
सूरज की हत्या होती है
धरती ऊर्वरा है
धरती
नये आकाश को
आकार देती हुई
उछाल देती है नया सूरज
और किरणें
नई हवा के साथ
निकल पड़ती हैं
फाग की खोई हुई
लड़ी की खोज में
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