साभार, प्रेमचंदः एक प्रसंग 'गोदान' से
1. भंगिमा क्या है? इस पाठ की भंगिमा को चिह्नित करें।2.इस पाठ को पूरी तरह समझते हैं, तो कुछ सवाल उठायें।
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होरी रेहननामा लिखकर कोई ग्यारह बजे रात घर आया, तो धनिया ने पूछा ▬▬ इतनी रात तक वहाँ क्या करते रहे?
होरी ने जुलाहे का गुस्सा दाढ़ी पर उतारते हुए कहा ▬▬ करता क्या रहा, इस लौंडे की करनी भरता रहा। अभागा आप तो चिनगारी छोड़कर भागा, आग मुझे बुझानी पड़ रही है। अस्सी रुपए में घर रेहन लिखना पड़ा। करता क्या! अब हुक्का खुल गया। बिरादरी ने अपराध क्षमा कर दिया।
धनिया ने ओठ चबाकर कहा ▬▬ न हुक्का खुलता, तो हमारा क्या बिगड़ा जाता था? चार-पाँच महीने नहीं किसी का हुक्का पिया, तो क्या छोटे हो गए? मैं कहती हूँ, तुम इतने भोंदू क्यों हो? मेरे सामने तो बड़े बुद्धिमान बनते हो, बाहर तुम्हारा मुँह क्यों बंद हो जाता है? ले-दे के बाप-दादों की निसानी एक घर बच रहा था, आज तुमने उसका भी वारा-न्यारा कर दिया। इसी तरह कल यह तीन-चार बीघे जमीन है, इसे भी लिख देना और तब गली-गली भीख माँगना। मैं पूछती हूँ, तुम्हारे मुँह में जीभ न थी कि उन पंचो से पूछते तुम कहाँ के बड़े धर्मात्मा हो, जो दूसरों पर डाँड़ लगाते फिरते हो, तुम्हारा तो मुँह देखना भी पाप है।
होरी ने डाँटा ▬▬ चुप रह बहुत बढ़-चढ़ न बोल। बिरादरी के चक्कर में अभी पड़ी नहीं है, नहीं मुँह से बात न निकलती।
धनिया उत्तेजित हो गई ▬▬ कौन-सा पाप किया है, जिसके लिए बिरादरी से डरें? किसी की चोरी की है, किसी का माल काटा है; मेहरिया रख लेना पाप नहीं है, हाँ, रख के छोड़ देना पाप है। आदमी का बहुत सीधा होना भी बुरा है। उसके सीधेपन का फल यही होता है कि कुत्ते भी मुँह चाटने लगते हैं। आज उधर तुम्हारी वाह-वाह हो रही होगी कि बिरादरी की कैसी मरजाद रख ली। मेरे भाग फूट गए थे कि तुम-जैसे मर्द से पाला पड़ा। कभी सुख की रोटी न मिली।
`मैं तेरे बाप के पाँव पड़ने गया था? वही तुझे मेरे गले बाँध गया।'
`पत्थर पड़ गया था उनकी अक्कल पर और उन्हें क्या कहूँ? न जाने क्या देखकर लट्टू हो गए। ऐसे कोई बड़े सुंदर भी न थे तुम।'
विवाद विनोद के क्षेत्र में आ गया। अस्सी रुपए गये, लाख रुपए का बालक तो मिल गया! उसे तो कोई न छीन लेगा। गोबर घर लौट आए, धनिया अलग झोपड़ी में भी सुखी रहेगी।
होरी ने पूछा ▬▬ बच्चा किसको पड़ा है?
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बतकही दोस्तों, इस पाठ से संबंधित बतकही में शामिल हों, आपकी भागीदारी से ही यह सिलसिला आगे बढ़ पायेगा।
Roshani Jaiswal sirf lepatkr bolna
बतकही धन्यवाद, रौशनी Roshani Jaiswal भंग का अर्थ होता है▬ टूटना। हमारा सामान्य अनुभव है कि हँसी-मजाक विवाद में बदल जाता है, यह भंगिमा है। यह अप्रीतिकर स्थिति है। इस पाठ में प्रेमचंद कहते हैं ▬▬ विवाद विनोद के क्षेत्र में आ गया। विवाद का विनोद के क्षेत्र में आ जाना प्रीतिकर स्थिति है। यह इस पाठ की भंगिमा है। एक भाव-प्रसंग से टूटकर या निकलकर अन्य भाव-प्रसंग से जुड़ जाना या अन्य भाव-प्रसंग में प्रवेश कर जाना भंगिमा है। इस पाठ में, बातचीत में या साहित्य के अन्य पाठ में बात करने की कला और भंगिमा को पहचानकर हम अपने भाषिक-व्यवहार को दुरुस्त कर इसे अपने व्यक्तित्व और व्यवहार को अधिक स्वीकार्य बना सकते हैं।
क्या आप मेरी बात से सहमत हैं?
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